मनमोहनी

(अपारशक्ति)
मनमोहनी
है कहानी – मनमोहनी की
कमलनयनी, बहुत ही सुंदर,गोरी और रूप अति सुंदर।
इस कहानी की मनमोहनी
सुंदरता में जिसकी तुलना तीनों लोंको की अप्सराओं से भी नहीं की जा
सकती है। और शक्ति उसके पास अपारशक्ति थी। कुछ भी कर सकने की क्षमता, अतिसहनशीलता,
किसी को भी पराजित करने की क्षमता।
मनमोहनी
मनमोहनी ?
सुन्दरी में क्या सानी है? पुष्प उसकी सहेली, कमल उसके नयन जिसके पिता गंर्धवों का राजन्, अब कौन शक्तिशाली?
है विचार मन में जके
पिता शक्तिशाली उसकी चिंतन कौन
करेगा मन में।
गंधर्वलोक की कन्या
मनमोहनी
यह कहानी का वह पन्ना
है,जहाँ से यह कहानी अमर हो जाती है,प्यार का अर्थ- आँखों से आँसू बहकर गिर रहे
थे,बेहद चाहत, पल में अपने प्यार से दूर होने का डर, प्यार के लिए आँखों से बहते
हुए अश्क, प्यार को पाने की चाहत, धरती और आसमान के बीच, दो प्यारों की कहानी
इतनी शक्तिशाली होने
के बावजूद भी वह इतनी मजबूर थी कि वह अपने
प्यार को उस समय न पा सकी। अपने प्यार को आसमान से गिरते हुए, बादलों के
उपर से गिरते हुए, बस देखती रही, आँसूओं की धाराएं बहती रहीं आँखों से, अपने प्यार
को पाने के लिए…….
समय का वो पल गुजर
रहा था। आँसूओं की धाराएं और तेजी से बह रही थी।
मन हो रहा था व्याकुल,
चाह हो रही थी। उसे देखने को, पर हरपल उससे वह दूर जा रहा था। उसे वह देख रही थी। अपने प्यार को दूर होते –
हुए देख रही थी।
मनमोहनी बहुत ही
बेबस और मजबूर थी। वह मन में यह सोंच रही थी। क्या हुआ इन शक्तियों को ? क्यों
ये हैं मेरे पास?
इन शक्तियों के होने पर भी, मै इतनी मजबूर हूँ।
पर मन न माने, मन की
गति से वह अपने प्रियतम के प्यार याद करने लगी
और उसके मन में प्यारें-
प्यारें मिलन के वो दिन, एक दूसरे के साथ- साथ बिताए वो पल, दिन, समय, वो सब याद
आनें लगे, आँखों में वो दृश्य दिखने लगें।
जब उन दोनों की मुलाकात हुई। वो पल भी अजीब था, वहाँ की नजारें भी अजीब थी। धरा का
वह भूखण्ड भी अजीब था।
चारों ओर फैली उँची-उँची पर्वतों का विशाल समूह, विशाल
सरोबर, पर्वतों से गिरते हुए झरनें, सरोवर में अनेक खिले हुए कमल के फूल,
सरोवर के
आस-पास कई प्रकार के फूलें और उनसे आने वाली, मन को मोह लेनी वाली सुगंध और वो
दिव्य प्रकाश जो वहाँ के वातावरण को, और सरोबर को अपने घेरे में ले रखी थी। और क्यों ?
सरोवर के चारों ओर
फैला हुआ दिव्य प्रकाश एक सुरक्षा घेरा था जो मनमोहनी की अनेक शक्तियों
में से एक शक्ति थी। वह सरोबर, साथ ही मनमोहनी तथा उसकी सहेलियाँ उस सुरक्षा घेरे के अंदर थी।
सरोवर के चारो ओर दिव्य प्रकाश फैला हुआ था।
मंद-मंद फूलों की सुगंध।
पर्वतों से गिरते हुए झरनों की आवाज भी उनकी
आवाजों को दबा नहीं पा रही थी। मनमोहनी और उसकी सहेलियों की। वो सब आपस में
वर्तालाप तथा हस्य क्रीड़ा कर रहीं थी।
मनमोहनी और उसकी सहेलियाँ सरोबर में नहा
रही थी और आपस में गुनगुना रही थी, हँस -हँसकर बाँतें कर रही थी।
वो मोहनी रूप ही
सबसे अलग थी। मोहनी रूप, मनमोहनी की रूप अति सुन्दर, कद उँची, गोरी चेहरा, लम्बें –
लम्बें बाल, गुलाबी होंठ, नीली – नीली आँखें, कमर पतली। यह दृश्य देखकर कामदेव
भी मनमोहनी पर मोहित हो जाते।
मंद-मंद फूलों की सुगंध, झरनों से गिरते हुए जल की आवाज और वो दिव्य
प्रकाश, उस वातावरण को रहस्यमयी बनाई हुई थी।
साथ ही वह मनमोहनी की, मोहनी रूप और उसकी सहेलियों का साथ होना। और
मनमोहनी की सारी शक्तियों का वह सुरक्षा घेरा। वह दृश्य अद्वितीय और अकाल्पनिक
थी।
पर अजब सी है किस्मत का खेल सारा, ईश्वर ने सब को प्यार बाँटा,
और इस प्यार में अजब सी है ताकत, जो बदल दे किस्मत का खेल सारा।
नियति ने लिखा था उनका मिलना।
उन दोनों का मिलना, वो पल,एक प्यारा सा एहसास तक सीमित नही था। वो प्यार
था जो प्यार की अर्थ ही बदल दे, जो बदल दे प्यार की परिभाषा, जो विसम परिस्थियों में भी अपने प्यार को पाने की ताकत रखती हो।
मनमोहनी और उसकी सहेलियाँ सरोवर में नहा रही थी, और आपस में गुनगुना रही थी, हँस -हँसकर बाँतें कर रही थी। वह दृश्य ही मन को
मोह लेने वाली मनमोहनी कि ही तरह मनमोहनी थी। मानो समय थम सा गया हो, पर आप सभी जानतें हैं कि समय कभी किसी के लिए नहीं
रूकता है।
दोपहर का समय था। धीरे- धीरे दिन बीतने को जा रहा, मनमोहनी अपनी सहेलियों के साथ बहुत ही खुश नजर आ
रही है। मनमोहनी की चेहरे का चमक दूर से ही सबसे अलग दिख रही है।
मनमोहनी अपने सहेलियों से कुछ दूर पर थी, वह सरोवर से
नहाकर उन बड़े -बड़े पत्थरों के तरफ जा रही थी।
कुछ सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थी, क्यूँरी सखी क्या खास है आज, मनमोहनी आज अतिसुंदर, रूपवती, ये मनमोहनी काया, और उस पर ये योवन का असर साफ – साफ दिख रही है।
मनमोहनी, उस सरोवर से नहाकर निकली
और उन बड़े -बड़े पत्थरों के बीच, उनके ओट में – पत्थरों के पीछे वह अपने कपड़े बदलने
के लिए…….
दोस्तों इस कहानी में हम थोड़ा
सा अल्पविश्राम लेते हैं और इस कहानी के पीछे
मतलब बहुत पीछे चलते हैं।
मनमोहनी मनुष्य जाति से बहुत
ही ज्यादा प्रेम करती थी, वह मनुष्यों की कहानियाँ,
सुनी और देखी थी। तथा उनकी सौर्यगाथा, इच्छाशक्ति, सहनशीलता और प्रेमशक्ति से बहुत ही प्रभावित थी।
वह मनुष्य की उन शक्तियों को अहसास करना चाहती थी। वह मनमुग्ध करने वाली मानव स्वरूप में अपने आप को ढालने लगी थी। वह उन एहसासो को एहसास करना चाहती थी।
वह उस प्यार को, मतलब प्रेमशक्ति को, तथा उन चाहतों को जो, तथा एक – दूसरे पर प्यार के लिए समर्पित हो जाना, प्यार के लिए एक – दूसरे के चाहतों का बलिदान कर देना।
धरतीलोक के उस प्यार को पाना चाहती थी। उन हदों को पार करना चाहती थी, जो लोग अपने प्यार को पाने के लिए कर जाते हैं, हर हदें, प्यार में आने वाली सारी परेशानियों को पार कर जातें हैं। वह प्यारा सा एहसास पाना चाहती थी।
मनमोहनी अपने आप को धरतीलोक की ही मानती थी। वह धरतीलोक की साधारण स्त्रियों की तरह ही साधारण दिखना चाहती थी।
वह साधारण स्त्रियों की तरह, वह धरती पर ही जीवन जीना चाहती थी। इसलिए वह प्राय: अपने सहेलियों के साथ धरती पर विचरण करने के लिए आया करती थी।
समय बीत रहा था। दिन –
महीने, साल- दरसाल, कई साल बीत गये। पर कहते हैं ना, उपर वाला जिसे ईश्वर कहते है- वह सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करता है।
वह प्राणी हो या कण। जाहे वह किसी भी रूप में
हो, मनुष्य, जीव-जन्तु, सुर- असुर, गन्धर्व, पत्थर,कण या फूल।
समय अपने गति से चल रहा, और ईश्वर से
माँगा गया मनोकमानाएँ, ईश्वर से माँगा गया इच्छित फल अपने
समय से वह अपने स्थिति और स्थान पर पहुँच जाती है।
जो ईश्वर की हम पर असीम कृपा
है। वह समय अपने गति से उन मनोकामनाओं का पूर्ण होने का गति से चल रहा था और किसी
की इच्छित फल पूर्ण होने वाली थी।
जी हां दोस्तों अब हम चलते
हैं कहानी के उस मोड़ पर जहां उसे छोड़ के आए थे।
मनमोहनी, उस
सरोवर से नहाकर निकली और उन बड़े -बड़े पत्थरों के बीच, उनके
ओट में – पत्थरों के पीछे वह अपने कपड़े बदलने के लिए जा रही थी, तभी
अचानक से वहां का वातावरण में बदलाव होने लगा अचानक
से मौसम बदलने लगा। तेज जोर से आँधी और तुफान आने लगा, वहां पर के
आस-पास के पेड़ उखड़ने लगें तथा टूटकर गिरने लगें।
एक बवंडर उन पत्थरों के आस – पास से, बड़ी गति से, उस जगह से पार हुआ। मनमोहनी सरोवर कि ओर देख रही थी।
वह अपनी सहेलियों की चिंता कर रही थी। पर उन सहेलियों
को अपनी चिंता नही थी, क्योंकि वो सब जानती थी कि वह सब मनमोहनी की सहेलियाँ हैं। चिंता और संकट
उनसे कोसो दूर भागती है।
वह जानतीं थी कि उन आँधी और
तुफान से उन्हें कोई समस्या नही होगी और न ही उन्हें कोई भी परेशानियाँ छू नही सकती।
मनमोहनी की सहेलियाँ नहाने
के बाद सरोवर के पास उन पत्थरों के पास ही बैठे थे, और आपस में मनमोहनी के बारें में
बातें कर रहीं थी। कुछ पलों के बाद आँधी और तुफान शांत हो चुका था और वहां का वातावरण फिर से मनोहरी
हो गयी थी।
उधर मनमोहनी को उन एक शक्तियों
में से एक शक्ति ने संकेत दिया कि कोई उसके आस – पास है, कोई मनुष्य
उसके आस-पास है।
साथ ही कुछ पलों के बाद उसे कहीं दूर से कहराने की आवाज उसके कानों में सुनाई
दे रही थी। मनमोहनी – सोचती है कि यहां पर मनुष्य कहां से आया, और उसके कहराने
की आवाज कैसी है।
उसके मन में उस मनुष्य के बारें
में दया आई और वह अपने ध्यानमन की शक्ति से उस जगह व स्थान को तलाशने लगी अपनी दिव्यदृष्ठि
से, उस ओर देखने के
लिए जिधर से कहराने की आवाज आने लगी।
वह आवाज बहुत ही पास से आ रही
थी। कहराने की आवाज कुछ ज्यादा ही पीड़ामयी थी। मनमोहनी ने अपने दिव्यदृष्ठि से देख
ली, वह तो कुछ ही दूर, सरोवर से सटा हुआ- उस देवम् पहाड़ से वह आवाज आ रही थी।
मनमोहनी
को भी मालूम है कि सरोवर से सटा हुआ, सरोवर के पास का वह पहाड़
(देवम् पहाड़) है।
जिस पहाड़ में बहुत ही लाभदायी और जीवन संजीवनी, योवन, रूपवान जड़ी- बूटी और कई प्रकार की जड़ी-बूटीयाँ वहाँ पर मिलती है।
मनमोहनी अपनी सहेलियों को
बिना बताए उस ओर चल पड़ी।
देवम् पहाड़ के ही किनारे
वह सरोवर बहती है।
जिस सरोवर पर मनमोहनी अपनी
सहेलियों के साथ नहाने आती थी। मनमोहनी
साधारण स्त्री कि तरह वह
उस रास्ते पर चल पड़ी। धीरे-धीरे वह चलते जा रही थी। उन पत्थरों के बीच एक सकरी
रास्ता था, वह रास्ता उन बड़े पत्थरों के बीच होते हुए उपर के ओर, उस पहाड़ की चोटी पर पहुँती थी।
मनमोहनी बहुत जल्दी वहाँ तक पहुँच गई।
वहाँ पर पहुँचते हुए मनमोहनी ने देखी। दो बड़े सकरे पत्थरों के बीच छोटी जगह पर
एक नवयुवक, नौजवान,पुरूष- जिसका एक पैर
उस छोटी सी जगह पर जो सकरी छेद थी।
उस पर फँसा हुआ था। उसका वह दर्दभरी कहराने की
आवाज अभी नही आ रही थी, और वह बेहोश था।
मनमोहनी तुरंत अपनी
एक शक्ति से उन पत्थरों पर वार की जिससे उन पत्थरों के बीच थोड़ा सा और जगह बन गई
और वह तुरंत उस नवयुवक के पैर को वहां से निकाल ली। और वहीं से कुछ दूर उसे उठाकर एक
समतल पत्थर पर उस नवयुवक को लेटा दी।
और मनमोहनी अपनी उन एक शक्ति में
से उस नवयुवक के पैर को देखकर उसके असहनीय दर्द और पैर में लगे चोंट को ठीक कर दी।
साथ ही वहीं पर लगी एक जड़ी बूटी को पत्थर से पीसकर उसके पैर में उसका लेप लगा दी। यह
सबकुछ हो रहा था, पर उसे कुछ भी मालूम नही था, क्योंकि वह नवयुवक अभी
भी बेहाश था। फिर मनमोहनी उस नवयुवक का सिर अपनी गोद
में रख ली।
उसे प्यार से देखने लगी। मनमोहनी गुलाबी साड़ी में बहुत ही खूबसूरत दिख
रही थी। और उस पर उसकी खुले बाल जो हल्की- हल्की हवाओं से इधर-उधर हिल रही थी।
उस
साधारण वस्त्र में भी उसकी रूप की चमक और सौंदर्य छुप नही पा रही थी। वह उस नवयुवक
का सिर अपनी गोद में रखी हुई थी, बस उसे ही देखे जा रही थी।
उस रूप को देख रही थी जो बहुत ही सुन्दर गोरा चेहरा, चेहरे में एक अनोखा
चमक, लंबा चेहरा, चौड़ी छाती, और उँचाई लगभग दोनों की एक बराबर थी।
वह सुन्दर, रूपवान
और बलशाली था। आज मनमोहनी के चेहरे में कुछ अलग से चमक थी, वह
बहुत ही खुश थी। उसकी गुलाबी होंठ कुछ कह बिना ही कुछ बोल रही थी। गालों में अलग से
गुलाबी लकीरें खिंच रही थी।
वह मन ही मन में यह सोंच रही
थी कि- ऐ मुझे क्या होनें लगा है? ऐ कैसा मीठा- मीठा एहसास है, जो मेरे दिल
को तेज कर रही।
इसके प्रति मेरे दिल में यह कैसा प्रेम जाग रही है। इसके चेहरे से मेरी
नजर नही हठ रही है। इसे देखकर भी मन नही भर रहा है। यह कैसा प्यारा सा एहसास है जो
मैं इसके प्रति आर्कषित हो रही हूँ।
मै अपने प्यार और इसके दर्द को एहसास कर रही हूँ।
एक साधारण स्त्री की तरह उसके मन में कई विचार उत्पन्न हो रही थी।
उसे अपनी सहेलियों
की बिल्कुल भी ध्यान नही थी, और न ही उस स्थान का जहाँ पर
वो दोनो थे। न ही उस पल का जो बीत रहा था।
बस वह अपने प्यार को ही देख रही थी। वो
भी प्यार में बेसुध हो गई थी। पर यह भी सच ही था कि वह धरतीलोक की एक साधारण स्त्री
की तरह ही दिखना और वो प्यार पाना चाहती थी।
जिसे कई वर्षों के बाद, इतने इंतजार के बाद अब वह प्यार और पल का संकेत मिल रहा था।वह प्यारा से एहसास दिल में
बीज की तरह खिल रहा था, वह प्यार जो पाना चाहती थी,
उस प्यार का, उसे एहसास हो रही थी, मानो वह इस प्यार को पाने के
लिए वर्षों से इंतजार थी, और आज वो पल और वह प्यार उसके सामने
है। मन ही मन में वह बहुत खुश थी।
मनमोहनी अपनी आँख बंद करके ईश्वर को हाथ जोड़कर
धन्यवाद कर रही थी। उसे उस समय का संकेत मिल चुका था। उसकी ईच्छित फल अब पूरा होने
वाली थी। उस प्यार को देखकर, पाकर खुश थी।
तभी उसकी नजर उसके
पैर की ओर गई जिस जगह पर चोंट लगी हुई थी। वह जानना चाहती थी कि इसके साथ क्या हुआ
था? वह अपनी शक्ति देख ली क्या हुआ था?
वह जड़ी-बूटियों की तलाश में
इस पहाड़ में आया है। जब वह उस उँचे पहाड़ में एक जड़ी-बूटी को निकालने के लिए बड़े
से पत्थर में चढ़ा ही था कि अचानक से आँधी-तूफान आने की वजह से उसके पास के एक पेड़
की टहनी टूट कर उसके पास गिरी थी,
जिसकी चापेट में आकर वह वहाँ से गिरकर वह उन
दो पत्थरों के बीच उस सकरी छेद में उसके पैर फँस गया था।
बहुत कोशिश करने के बाद भी
वह वहाँ से नही निकल पाया और वह दर्द से कहराने लगा।
मनमोहनी वो जान गई थी कि
वह नौजवान किस लिए यहाँ पर आया है।
मनमोहनी उस नवयुवक के सिर
को अपनी गोद में रखे हुये बस उसे ही देख रही थी। पीछे से वो उस पत्थर पर अपनी पीठ
टेककर बैठी थी। उसके बाल खुले हुये थे।
और हवाओं के वजह से उसकी बाल इधर- उधर
हिल-डुल रही थी। दोपहर का समय था, सूरज की किरण मनमोहनी और उस नवयुवक के उपर
पड़ रही थी, वह नवयुवक, वो अभी भी होश में नही आया था।
उस उँचाई पर, वहाँ का वातावरण बहुत ही मनोहरी थी। आस-पास कई प्रकार की जड़ी- बूटीयाँ
और सुगंन्धित फूलों की खुशबू,सूरज की किरण, चारों-ओर फैली हुई हरयाली
और उस उँचाई से नीचे देखने पर वह दृश्व जो
वहां से वह बहुत ही लुभावनी सरोवर दिखाई दे रही थी।
हल्की-हल्की बहती हुई उन हवाओं में फूलों
की खुशबू मिली हुई थी। न जाने कब मनमोहनी को नींद लग गई, और
वो सो गई।
उन दोनों की चेहरे में कुछ खास ही चमक थी। मनमोहनी बहुत ही रूपवती और
सुंदर दिख रही थी। साथ ही वह नवयुवक बहोत ही प्यारा और मनमोह लेने वाला उसका
सुंदर रूप, मनमोहक था।
मानो ऐसा लग रहा था कि वह दोनों एक
दूसरे के लिए ही बने हो।
ईश्वर ने उन दोनों की जोड़ी, एक-
दूसरे की साथ देने के लिए ही बनाई हो। समय और संकेत दोनों ही, उन दोनों के लिए, ईश्वर के द्वारा मिला उपहार था।
ईश्वर द्वारा दिया गया मनोवांछित फल, मनोकामनाएँ, सही समय में, अपने गतंव्य तक पहुँच ही जाती है।
मनमोहनी सो रही थी। और वो नवयुवक भी बेसुध था। हल्की-हल्की
हवायें अभी भी चल रही थीं।
कुछ समय बाद अचानक से उस युवक की आँखें खुली और उसने
आसमान की ओर देखा, सूरज की किरणें उसके आँखों में
पड़ रही थी।
वो होश में आ गया था, उसने चारों-ओर अपनी नजरें
घूमाई। फिर उसने वो देखा जो पहले कभी भी नहीं देखा था।
वो सुन्दरता, वो खूबसूरती और वो चमक। उसने वो रूपवती को देखा। उस सुंदर काया को, रूप की देवी मनमोहनी को देखा ही जा रहा था।
एकटक बस देख ही रहा था। मन ही
मन में वह बहुत ही खुश था। वह प्रेम निमंत्रण देने के लिए उसके उठने के इंतजार में
था। कि कब उसकी नींद खुले और उसकी नजर मेरी नजरों से मिलें।
अभी भी हल्की हवायें
बह रही थीं, मनमोहनी के खुले बाल उसके चेहरे को कभी ढक रही
थी, तो कभी वापस अपने जगह पर आ जा रही थी।
दोपहर से अब शाम होने को आई, वह नवयुवक वहाँ पर बैठा- बैठा बस मनमोहनी के उठने के इंतजार में था।
वह
मनमोहनी को नही उठाया।
उस मन को मोह लेनी वाली रूप को, बस
उसे ही देखा ही जा रहा था। कुछ समय के बाद, जोरों से हवा बहने
लगीं,
मनमोहनी की आँखें
अभी भी बंद थी। और वह कुछ बोल रही थी, मनमोहनी ने कही- मृदली
अब घर चलो।
कुछ बोल ही पाई थी। कि उसकी आँखे खुल गई। जब आँखे खुली तो, उस नवयुवक को देखकर कही – आप,
इतना कहकर वह उस नवयुवक के नजरों में देखने लगी।
दोनों के चेहरों
में अलग सी चमक थी। दोनो गुलाबी हो उठे थें। दोनों मुस्कुराते हुए, बस एक-दूसरे को ही देख रहें थें।
मानों वो आज
न मिलें हो। वो कई वर्षों से मिलते आए हों। मतलब ऐसा लग रहा था कि उनका प्रेम आपस में कई वर्षों से है।
वो एक-दूसरे
को कई वर्षों से जानतें हों। न बिछड़े वाले प्रेमी- प्रेमिका हों। जैसा कि वह दोनों
प्रेम के बंधन में कई सालों से बंधे हों।
अमर-प्रेम, आसाधरण प्रेम, जो बने ही हों एक- दूसरे के लिए, ये प्रेम जोड़ी।
मनमोहनी मुस्कुराते हुए, एक तरफ नजर
फेरते हुए और उस नदी की ओर देखती हुए कहती है- मेरी सहेलियाँ।
और वहां से उठकर वह जाने लगी, छोटे- छोटे कदम पर वह पीछे मुडकर देख रही थी और वहां से धीरे- धीरे चलकर वह जाने लगी।
इधर वह युवक
एकटक, बस मनमोहनी को देख रहा था। उस नौजवान के दिल में बहुत सारे
प्रश्नों के उत्तर मिलने की उम्मींदें थी।
बहोत सारे प्रश्न थें उसके मन में, परंतु वह अभी कुछ भी न बोल पा रहा था। बस वह उस ओर ही देख रहा था, जिधर मनमोहनी जा रही थी।
मनमोहनी वहां से, उस जगह से, चली गई थी। उस रास्ते से, नीचे की तरफ उतर रही थी। बस कुछ ही दूर जाने के बाद वह अपने मन की शक्ति
से वह जल्द ही उस सरोवर के पास पहुँच गई।
जहाँ पर उसकी सहेलियाँ उसकी इंतजार कर रही थी।
और अपने सबसे से प्रिय सहेली मृदली से कही – मृदली, अब चलो भी। मनमोहनी को देखकर उसकी सारी सहेली उससे पूछने लगीं।
सहेलियां उससे पूछतीं है– अरे, मोही(मनमोहनी की सहेलियां उसे प्यार से मोही कहकर बुलाती थी) कहां चलीं गई थीं। हम सब कब से तुम्हारी
इंतजार कर रहें हैं।
मनमोहनी मुस्कुराते हुए अपने सहेलियों से कहती– अब आप सब चलो। अब संध्या का समय होने ही वाला है। अब हम
सब को यहाँ से चलना चाहिए।
सभी सहेलियां आपस में मुस्कुराते हुए कहतें हैं– ठीक है, चलो चलतें
हैं।
तभी उन्हीं में से एक सहेली कहती है- मोही, क्या तुम्हें पता है? यहाँ पर आँधी-
तुफान आया था, और एक महाभयानक बवंडर भी, जो सरोवर के आस- पास उथल- पुथल कर दिया। कई पेड़ों को उखाड़ फेंका।
चट्टानो और पहाड़ों को तोड़ कर रख दिया।
मनमोहनी कहती है- हाँ मुझे मालूम है, मैने इन्हीं आँखों से देखी। और मुस्कुरा
रही थी।
तभी उसकी सभी सहेलियाँ उससे एक साथ पूछँती हैं- तो, मोही, तुम उस समय कहाँ थीं? मनमोहनी ने उत्तर
दिया – मै, उस आँधी और तुफान के रूक जाने के बाद – इधर ही आ
रही थी, कि मुझे किसी की मदद के लिए जाना पड़ा।
फिर मनमोहनी मुस्कुराते हुए, उस देवम् पहाड़ को देखते हुए कहती- चलो चलतें हैं।
और फिर मनमोहनी और उसकी सहेलियाँ उस सरोवर को हाथ जोड़कर और
आँख बंद कर, मन से नमस्कार करतीं हैं। तथा
कुछ मंत्र पढ़कर वहां से अंर्तध्यान हों जाती हैं।
उन सबके जाते ही, उस सरोवर के चारों ओर बना दिव्य प्रकाश और जो उस सरोवर को घेरा हुआ था वहाँ
से हट जाता है।
और वह फिर से साधारण सरोवर कि तरह दिखना लगता है। वहां के आस- पास
के बड़े- बड़े पहाड़ अब छोटे हो गयें थें।
उधर वह नवयुवक मनमोहनी को जाते हुए ही देखता रहा, मनमोहनी के जाने के बाद वह कुछ
दूर तक उन सकरी रास्तों को पार करता हुआ, मनमोहनी को देखने की
इच्छा से वह अपने कदमों को तेज करता हुआ।
तेजी से आगे बढ़ने लगा। उस सकरी पहाड़ी रास्ता
से नीचे की ओर उतरने हि लगा था कि उसकी नजर उस रास्ता के किनारे उस काँटेदार झाड़ी पर पड़ी जहाँ पर कुछ चमक रही थी।
पास जाकर देखा तो वह- पैर के पायल थी। सोने की पायल
थी। वह नवयुवक उस पायल को उठाकर अपने हाथ में रखकर उसे देखने लगा। और मन में यह सोचने
लगा कि- इस पायल को मैने कहीं देखा है? पर कहाँ देखा है?
अभी भी सूरज की किरणों से वहां पर धूप थी। और वह
सोने की पायल धूप में और तेजी से चमक रही थी। उस नवयुवक के हाथ में आने के बाद वह पायल
और भी ज्यादा चमकने लगी।
इस पायल को मैने कहीं देखा है? पर कहाँ देखा है? कहाँ देखा है?…. कहाँ देखा है?….
हाँ. मैने पायल की भी आवाज सुनी थी। पर कहाँ? कहाँ?
कहाँ?….
वह नवयुवक वहाँ पर उस छायादार पेड़ की छांव में उस पत्थर पर बैठ गया और अपनी दोनों
आँखें बंदकर मन में ध्यान लगाने लगा। सोचने लगा।
पर जैसे ही वह अपनी आँखें खोला और
तभी उस पायल की तेज चमक उसके आँखों में पड़ी, और उसे याद आ गया कि यह पायल वह नवयुवती की है। जिसको मै खोज
रहा हूँ।
हां जब वह जा रही थी तो यही पायल बज रही थी। और इसकी तेज चमक मेरे आँखों में आ
रही थी।
पर यह पैरों से निकलकर यहाँ कैसे आई, इस काँटेदार झाड़ी में।
वह नवयुवक ने उस सकरी रास्ता को देखकर अंदाजा लगाया कि- जब वह यहाँ से निकली होगी
तो, उसके पैर इस झाड़ी में फँस गई होगी।
तभी पायल पैर से निकल गई होगी और इस झाड़ी में फँस गई।
आगे……
जी, हाँ
दोस्तों, आप इस पोस्ट में पढ़ेगें –
अपारशक्ति, कमलनयनी, बहुत ही सुंदर,गोरी और रूप अति सुंदर,मनमोहनी की कहानी है ।जो इस पोस्ट के माध्यम से आप लोगों से Share कर रहा हूँ। जी हाँ, आप से यह जरूर जानना चाहूँगा। इस पोस्ट के बारें, आपकी राय क्या है? जरूर लिखें, मेरे इस lakshmanvaiga2248@gmail.com ई-मेल के माध्यम से।
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