तेरी नजर , तेरा प्यार . TERI NAZAR, TERA PYAR.

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तेरी नजर , तेरा प्‍यार

 

जी हां दोस्‍तों

हम इस पोस्‍ट में इस  प्रेम कहानी तेरी नजर, तेरा प्‍यार की प्रेमी जोड़ी की प्रेम
कहानी की
, वह प्रेम की हदें
और उनकी प्‍यार भरी अमर प्रेम सफर के बारें में मेरे द
्वारा उन दो प्रेमी की कहानी मेरे लब्‍जों की जुबानी, मेरे द्वारा,
सुनेंगे- पढ़ेंगे।



जी हां वो हदें जो सारीं
जहां को पार कर जाए
,

हां तेरी नजर और तेरा प्‍यार
सारी जगह नजर आए।

यह कहानी एक प्रेमी जोड़ी
की है
, जी हां यह कहानी – जयस और रजनी की है। जो आपस में बहुत ही ज्‍यादा प्‍यार
करते हैं
, वो प्‍यार जो सारीं 
हदें पार कर जाए
,वो प्‍यार जो सारी जगह नजर आए।


हरे-भरे पेड़- पौधों के बीच, उन दो पहाड़ों के नजदीक – नदी
के किनारें
, पत्‍थरों के उँचे –
उँचे टीले
, उन दोनों पहाड़ों
के इस पार
, खुले आसमान के नीचे
एक बड़ी सी टीले पर रजनी बैठी थी


कुछ मन में सोंच रही थी, उसकी चेहरे में अजीब सी
चाहत झलक रही थी। हल्‍की-हल्‍की हवाओं के झोंके उसके खुले हुऐ बांलों को हिला रही
थी।

सूरज की किरण उसकी चेहरे को अपनी चमक दे रही थी।
उन गुलाबी होंठों पर अलग से गुलाबी लकीरें खिंच रही थी। वह अपने दिल में बसे
दिलदार को अपने नजरों में लाने की कोशिश कर रही थी।

कभी उँचे आसमान को देखना, कभी उन उँचें- उँचें
पहाड़ों को देखना
, और बहती हुई उस नदी को देखना जो वहां से बहुत ही दूर पर थी।

रजनी 
आसमान को देखकर मन – मन ही उपर वाले को धन्‍यवाद कह रही थी
, उन उँचें- उँचें पहाड़ों
को धन्‍यवाद कह रही थी
, जिनके गोंद में  वह पली-बढ़ी, उस नदी को धन्‍यवाद कह रही
थी जिसने हर पल रास्‍ता दिखाई।

ऐसा लग रहा था कि – मानों वह सब रजनी के मित्र-
दोस्‍त हों
, रजनी के योवन के
राजदार हों
, जो इस खुशी के पल
के साक्षी हैं।

रजनी कभी मुस्‍कुराके कभी गुनगुनाके अपनी ये
खुशी के उस पल को सभी से  बांट रही है।मानो
वह कह रही थी इस बाली उमर और ये योवन के सफर में साथ देने के लिए  धन्‍यवाद। 

रजनी उन पलों को ही याद कर थी । उन ख्‍यालों को और
उन सपनों को
, उन सपनों का सच
होने पर बहुत  खुश थी। उस पर ही वह अपना प्‍यार
और अपना सब कुछ समर्पित करना चाहती थी।

वो हदें, वो प्‍यार की  सारीं हदें जो अक्‍सर लोग पार कर जाते हैं, और पार करने के लिए तैयार
होतें हैं।

 

उन पहाड़ों के उस पार, आस-पास दो बड़े  पत्‍थरो के बीच, उपर से नीचे देखने पर बहुत
ही भयंकर खाई दि रही थी। चारों ओर बस खाई ही खाई दिख रही थी।

बहुत ही डरावना और शान्‍त वातावरण था। मानो वो
जयस के दोस्‍त हों। वो प्‍यारे साथी हों। उनसे क्‍या डर? जयस उन मोंटे पेड़
के तने
, जो गिरे हुये और
आपस में सटे हुये थे।

जिनमें वह बैठा था, अपनी सपनों की रानी, ख्‍वाबों की मलिका, रातों की रानी की यादों
में खोया हुआ था और उसकी ख्‍यालों में कुछ गुनगुना रहा था। बस एक झलक देखने के लिए
तड़प रहा था। उस पर उसकी प्‍यार की नजर का असर हो रहा था। उन बड़े पत्‍थर में अपने
प्‍यार की तश्‍वीर को उकेर रहा था। उसकी मनमोहनी चित्र उकेर रहा था।

जयस को लग रहा था कि वह, और उसकी नजर और उसका प्‍यार
सब कुछ है उसके लिए
, ये दिल जाने या फिर उसका प्‍यार, न जाने वह हर समय , हरपल वह उसी की नजर की
तलाश में ही रहता था।

वह खूबसूरत चेहरा हमेशा उसके दिलोंदिमाग में
छाया रहता
, वो भोली सी चेहरा
हमेशा उसके नजर ही रहता था।

वह
सबकुछ दे बैठा था
, उस खूबसूरत
प्‍यार के लिए
, उस प्‍यार के लिए मरमिटने के लिए भी तैयार था, वो सारी हदें पार कर जाना चाहता था उसके लिए – उसकी चाहत के लिए, उसकी

एक
मुस्‍कान के लिए
, चाहतों का
हिसाब ले बैठा था- वो अपना सबकुछ दे बैठा था
, उस प्‍यार के
लिए। चाँद और चाँदनी उन दोनों के गवाह थे। उनकी प्रार्थना थी ईश्‍वर से वो मिल जाए
, हो जाए एक, हो जाए दो जिस्‍म एक जान, सच हो जाए उनके हर सपने, बस जाए उनका घर संसार।



रजनी एक सीधी – सादी और बहुत ही भोली और बहुत ही मासूम लड़की थी। कुछ भी कपड़े पहन ले, उन सभी कपड़ो में बहुत ही खूबसूरत दिखती
थी।

गोरी, लंबी चेहरा, उँचा कद, पतली कमर, खूबसूरत मुस्‍कान के साथ गुलाब के
पंखुड़ी के समान गुलाबी होंठ और झील सी नीली आँखें और हँसे तो उन गालों में हल्‍की
से गुलाबी रंग चढ़ जाए। जब चलें तो दिल की धड़कन तेज हो जाए।

चालिए
आगे चलते हैं इस कहानी में

रजनी
पहाडों से सटे और नदी के किनारे बसे राजपुर गाँव में अपने परिवार के साथ रहती थी।
उसके परिवार में उसका एक छोटा भाई और उसके माता- पिता थे।

जो
एक सम्‍पन्‍न परिवार था। उस गाँव में रजनी के दादा जी का एक कई साल पुराना फुलों
का दुकान था
, जिससे उसकी परिवार का आय
होता था। 

उस नदी के किनारे वह फुलों का दुकान था। और नदी के किनारे तट में एक बड़ा
सा
श्री भोलेनाथ जी का मंदिर था
,

जिस
मंदिर पर हर जगह के लोग
, दूर दराज के
लोग भ्रमण करने के लिए आते थे। 

और अपने मनवांछित वरदान पाने के लिए, अपने मनोकामनाओं को पूर्ण होने के लिए श्री भोलेनाथ जी से प्रार्थना करने
के लिए आते थे। दूर-दूर तक उस मंदिर की प्रसिद्धी फैली हुई थी।

 

रजनी
अपने भाई के साथ उस नदी के किनारे खिले उन कमल के फूल और आस-पास खिले फूलों को
तोड़ लाती थी। उन फूलों को अपने दूकान में 
लाकर बेचती थी। 

और कुछ फूलों को वह उन पहाड़ों से लेकर आती थी। जो बहुत ही चमत्‍कारी
और सुगंन्‍धित होते हैं जिनसे कुछ बीमारियों का इलाज भी होता है। 

पहाड़ों के उस
पार वैधपुर गाँव में एक वैध जी रहतें है
, जिनकों इन चमत्‍कारी और सुगंन्‍धित फूलों की जरूरत होती थी। जिनसे वह लोगों
का उपचार करते थें।  


रजनी सुबह सुबह, अपने भाई के साथ रोज उस पहाड़ में जाया करती थी। 


जहाँ से वह उन फूलों को  लाती थी, उस जगह का नाम मिलन पहाड़ी था। वहाँ
का क्‍या? नजारा था। उस पहाड़ी में चारों -ओर फूलों से भरा छोटे-छोटे मैदान
, कई प्रकार के रंग- बिरंगें फूलें, कुछ तो बहुत ही चमत्‍कारी
और औषधि के रूप में जिसका इस्‍तमाल होता है। 


    उस पहाड़ी से उस गाँव को देखने पर कुछ
अलग ही नजारा था। उस मनोहरी और सुगन्‍धित वातावरण में रजनी कुछ पल के लिए सबकुछ
भूल जाती थी। और तभी

रजनी का छोटा भाई(ऋतु) जिसका नाम
ऋतु था। वह अपनी दीदी को कहता
चलो दीदी अब चलो, देर हो रही है। 

हमें मंदिर भी जाना
है। तब रजनी कहती चलते हैं – छोटे। फिर दोनो वहाँ से फूल लेकर
, उस पहाड़ी से नीचे आ जाते। यह रोज की उन दोनों की दिनचर्या थी। 

वो दोनों पहाड़ी
से फूल लाते और उसे  दुकान में रखते और कुछ
फूल लेकर दोनो भाई
बहन, भोलेनाथ जी
की पूजा के लिए
, श्री भोलेनाथ जी की मंदिर में जाते। 

    फिर वहाँ
से रजनी दूकान में रूक जाती और ऋतु घर को चला जाता।
 


रजनी उस फूल की दुकान में बहुत ही व्‍यस्‍त रहती
थी। क्‍योंकि वह फूल की दुकान उस मंदिर के पास ही था।  

    उस मंदिर में बहुत ही श्रद्धालू भक्‍त आते थे, जिससे वहाँ पर बहुत ज्‍यादा भीड़ लगती थी। जितने भी श्रद्धालू भक्‍त आते, रजनी की ही फूल की दूकान से माला, फूल लेते थे।

 

पर
सच कहूँ तो रजनी उस फूल की दुकान में उन फूलों की ही तरह बहुत ही सुंदर और मनमोह लेने
वाली फूल थी। 

लोगों की मदद करती, लोगों
से हँसकर
, बड़े प्‍यार से बाँते करती। लोग रजनी को देखकर, बस उसे ही देखते रहते। क्‍योंकि उसकी चेहरे की चमक और सुंदरता को देखकर, 

लोग बस यही कहते कि- वह यहाँ की नहीं है, वह तो
आसमान से उतरी हुई अप्‍सरा है।

एक दादी अम्‍मा रोज उस दूकान
में आती थी।

उस दादी को रजनी तब से जानती
है जब वह 8 वर्ष की थी।

वह दादी अम्‍मा रोज उस दूकान
में आती और रजनी से कहती – प्‍यारी तुझे एक बहोत ही सुंदर प्‍यारा ले जायेगा।

मुस्‍कुराते हुए रजनी कहती-
दादी कैसी हैं आप?
, और दादू कैसे
हैं?

मेरी प्‍यारी के प्‍यारे कैसे हैं? दादू !

दादी कहती है – अरे प्‍यारी, श्री भोलेनाथ की दर्शन, उनका आर्शीवाद और तुझे देखकर मन को बहोत शान्ति मिलती है।

तेरे दादू बहुत ही अच्‍छे हैं, और वो
धीरे-धीरे अब स्‍वाश्‍थ हो रहें हैं। तेरे दिये हुए उन फूलों को वैध जी ने दवा
बनाकर दिया जिसे तेरे दादू रोज सेवन करते हैं। और अब स्‍वाश्‍थ हो रहें हैं।

तेरे दादू ने कहा कि – प्‍यारी को मेरा आर्शीवाद और प्‍यारी
को बहुत गुड़ी प्‍यारा मिल जाए।

रजनी के आँखों में आँसू आ गये और वह कहती है दादी से- ओ
मेरे प्‍यारी दादी-दादू
, 
श्री भोलेनाथ जी की आर्शीवाद आप दोनों पर सदा बना रहें। आप दोनों सदा स्‍वाश्थ
रहें।

उधर से ऋतु आ रहा था। और दूकान में पहुँचते ही उसने दादी को
देखा और दादी से कहता है – दादी जी
,प्रणाम !

और दादी ने ऋतु से कहा – मेरा बच्‍चा, सदा
खुश रहे
!

प्‍यारी अब मै चलती हूँ। 
दादी ने कहा।

ठीक है दादी। रजनी ने कहा।

रजनी, दादी को जाते हुए देख रही थी। दादी नदी के
किनारे बनी हुई रास्‍ते से उस उँचे पहाड़ की ओर जा रही थी। दादी का घर उस उँचे पहाड़
के पीछे था।

दोपहर के बाद का समय हो चला था। ऋतु, रजनी
को बुलाने ही आया था।

ऋतु ने रजनी से कहा- दीदी चलें, घर
चलें। मम्‍मी ने तुम्‍हारे लिये मीठी खीर बनाई है। बहुत ही मीठा लगा। मैने तो खा
भी लिया।

चलो न दीदी, जल्‍दी चलतें हैं,  दोनों मिलकर मीठी खीर खायेगें।

हाँ छोटे चलते हैं।……… 


उधर जयस

चाहतों का हिसाब ले बैठा था- वो अपना सबकुछ दे बैठा था।

 

    जयस एक
बहुत ही सुंदर नौजवान युवक था। चौड़ी छाती
, कद – लंबे, घुंघरालू बाल, गोरा-चिट्टा
और बहुत ही मेहनती युवक था
, जो अपने पिता जी के साथ रहता था। 

    पहाड़ों के उस पार उस गाँव में एक ही वैधराज थे। जिनका वह एक एकलौता पुत्र था। वह अपने
पिता के कामों में मदद करता था। औषिधि बानाने लिए
वह उन पहाड़ों से जड़ी-बूटियाँ
लाता। उसे नाव बनाना भी आता था।

जयस खाली समय में अपने दोंस्‍तों के साथ उस नदी के किनारें, उस समतल पत्‍थरों में नव बनाया करते थें।

 

आगे……





जी, हाँ दोस्‍तों, 

मैने इस पोस्‍ट में इस  प्रेम कहानी तेरी नजर, तेरा प्‍यार की प्रेमी जोड़ी की प्रेम कहानी की, वह प्रेम की हदें और उनकी प्‍यार भरी अमर प्रेम सफर के बारें में मेरे द्वारा उन दो प्रेमी की कहानी मेरे लब्‍जों की जुबानी, मेरे द्वारा, सुनेंगे- पढ़ेंगे। 

हाँ, आप से यह  जरूर  जानना चाहूँगा। इस पोस्‍ट के बारें, आपकी राय क्‍या है? जरूर लिखें, मेरे इस lakshmanvaiga2248@gmail.com ई-मेल के माध्‍यम से।


धन्‍यवाद

lakshmanvaiga2248@gmail.com
https://www.lbaiga.blog


            

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